भारतीय संविधान में कितनी अनुसूचियां हैं:- भारतीय संविधान विश्व का सबसे विस्तृत संविधान है, और इसमें विभिन्न पहलुओं को व्यवस्थित करने और नियंत्रित करने के लिए अनेक अनुसूचियों का समावेश किया गया है। संविधान की ये अनुसूचियाँ विभिन्न विषयों से संबंधित हैं, जो कि सरकार के विभिन्न अंगों, नागरिकों के अधिकारों, सरकार की शक्तियों और जिम्मेदारियों के संचालन में मदद करती हैं।
भारतीय संविधान को 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया था और 26 जनवरी 1950 को यह लागू हुआ। इसके प्रारंभिक रूप में 8 अनुसूचियाँ थीं, लेकिन बाद में संवैधानिक संशोधनों के माध्यम से इस संख्या में वृद्धि की गई। वर्तमान में भारतीय संविधान में कुल 12 अनुसूचियाँ हैं, जिनका महत्व और उद्देश्य अलग-अलग है। आइए हम विस्तार से इन अनुसूचियों के बारे में चर्चा करें:
1. प्रथम अनुसूची:
पहली अनुसूची में भारत के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सूची दी गई है। इसमें यह भी बताया गया है कि प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों की सीमा क्या होगी। संविधान के प्रारंभ में, भारत में 29 राज्य और 7 केंद्र शासित प्रदेश थे, लेकिन समय के साथ राज्यों का पुनर्गठन और विभाजन होता रहा, और इसके अनुसार इस अनुसूची में भी संशोधन होते रहे।
2. द्वितीय अनुसूची:
इस अनुसूची में भारत के राष्ट्रपति, राज्यपाल, उच्चतम और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, लोकसभा और राज्यसभा के अध्यक्षों, और अन्य संवैधानिक पदाधिकारियों को प्राप्त वेतन, भत्तों और अन्य सुविधाओं का उल्लेख किया गया है। यह अनुसूची यह निर्धारित करती है कि ये अधिकारी कितनी वेतन और भत्ते प्राप्त करेंगे।
3. तृतीय अनुसूची:
तृतीय अनुसूची में विभिन्न पदों के लिए ली जाने वाली शपथ और प्रतिज्ञाओं का विवरण है। इसमें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, सांसद, मंत्री, उच्चतम और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश आदि के लिए शपथ या प्रतिज्ञाओं के प्रारूप दिए गए हैं। यह शपथ और प्रतिज्ञा उन लोगों को संविधान के प्रति निष्ठा और संविधान में विश्वास बनाए रखने के लिए बाध्य करती हैं।
4. चतुर्थ अनुसूची:
यह अनुसूची राज्यसभा में प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के प्रतिनिधित्व को निर्दिष्ट करती है। प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के प्रतिनिधियों की संख्या उसकी जनसंख्या के आधार पर निर्धारित की जाती है। इसमें यह प्रावधान है कि राज्यसभा में अधिकतम 250 सदस्य हो सकते हैं, जिनमें से कुछ सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामांकित होते हैं।
5. पंचम अनुसूची:
पंचम अनुसूची भारत के अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन से संबंधित है। इसमें यह प्रावधान किया गया है कि इन क्षेत्रों में जनजातीय समुदायों की स्थिति को सुधारने के लिए विशेष उपाय किए जाएं। इसमें जनजातीय सलाहकार परिषद और उनके अधिकारों के संरक्षण के लिए विशेष व्यवस्थाओं का प्रावधान किया गया है।
6. षष्ठ अनुसूची:
यह अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा, और मिज़ोरम के जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित है। यह अनुसूची इन राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों में स्वायत्त जिला परिषदों और क्षेत्रीय परिषदों के गठन का प्रावधान करती है, ताकि ये क्षेत्र अपनी प्रशासनिक गतिविधियों को नियंत्रित कर सकें। इसमें स्वायत्त परिषदों को विधायी, कार्यकारी, और न्यायिक शक्तियाँ भी प्रदान की गई हैं।
7. सप्तम अनुसूची:
सप्तम अनुसूची भारतीय संघीय ढांचे की आधारशिला है। इसमें तीन सूचियाँ शामिल हैं: संघ सूची, राज्य सूची, और समवर्ती सूची। संघ सूची में वे विषय आते हैं जिन पर केवल संसद कानून बना सकती है, राज्य सूची में वे विषय होते हैं जिन पर राज्य विधानसभाएं कानून बना सकती हैं, और समवर्ती सूची में वे विषय होते हैं जिन पर दोनों ही संसद और राज्य विधानसभाएं कानून बना सकती हैं।
8. अष्टम अनुसूची:
यह अनुसूची भारतीय संविधान में मान्यता प्राप्त भाषाओं की सूची प्रदान करती है। प्रारंभ में इसमें 14 भाषाएँ थीं, लेकिन समय के साथ इसे बढ़ाकर 22 भाषाएँ कर दिया गया है। ये भाषाएँ संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त हैं, और भारत सरकार द्वारा इन्हें विभिन्न अधिकार और सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं।
9. नवम अनुसूची:
नवम अनुसूची का निर्माण प्रथम संवैधानिक संशोधन (1951) के दौरान किया गया था। इसमें ऐसे कानून और विधेयक शामिल होते हैं जिन्हें न्यायिक समीक्षा से छूट दी जाती है। इसका उद्देश्य था कि भूमि सुधार और कृषि क्षेत्र में होने वाले सुधारों को न्यायालय में चुनौती न दी जा सके। हालांकि, 2007 में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इस अनुसूची में शामिल कानून न्यायिक समीक्षा के दायरे से पूरी तरह बाहर नहीं हो सकते, और उन कानूनों की संवैधानिकता की जांच की जा सकती है।
10. दसवीं अनुसूची:
दसवीं अनुसूची दल-बदल विरोधी कानून से संबंधित है, जिसे 52वें संवैधानिक संशोधन (1985) द्वारा संविधान में जोड़ा गया था। इसका उद्देश्य दल-बदल की समस्या को रोकना है। इस अनुसूची के तहत यदि कोई सदस्य अपनी पार्टी के निर्देशों का उल्लंघन करता है, या स्वेच्छा से अपनी पार्टी से इस्तीफा दे देता है, तो उसकी सदस्यता समाप्त की जा सकती है।
11. एकादश अनुसूची:
यह अनुसूची 73वें संवैधानिक संशोधन (1992) द्वारा जोड़ी गई थी, और यह पंचायतों से संबंधित है। इसमें पंचायतों के अधिकारों और कर्तव्यों की सूची दी गई है। इसमें 29 विषयों का उल्लेख किया गया है, जिन पर पंचायतें निर्णय ले सकती हैं, और अपने क्षेत्र के विकास के लिए योजनाएँ बना सकती हैं।
12. द्वादश अनुसूची:
द्वादश अनुसूची 74वें संवैधानिक संशोधन (1992) द्वारा जोड़ी गई थी, और यह नगरपालिकाओं से संबंधित है। इसमें नगरपालिकाओं के अधिकारों और कर्तव्यों की सूची दी गई है। इसमें 18 विषयों का उल्लेख किया गया है, जिन पर नगरपालिकाएं अपने क्षेत्र में प्रशासनिक और विकासात्मक गतिविधियों का संचालन कर सकती हैं।
निष्कर्ष:
भारतीय संविधान की ये 12 अनुसूचियाँ संविधान के विविध पहलुओं को व्यवस्थित और नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये अनुसूचियाँ न केवल प्रशासनिक और विधायी ढांचे को सुव्यवस्थित करती हैं, बल्कि नागरिकों के अधिकारों और उनकी सुरक्षा को भी सुनिश्चित करती हैं। समय के साथ इन अनुसूचियों में आवश्यकतानुसार संशोधन किए गए हैं, जिससे संविधान समय की मांगों के अनुसार विकसित होता रहा है।