सूर्य देवता, जिन्हें “सूर्यनारायण” और “आदित्य” भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में प्रमुख देवताओं में से एक हैं। वे संसार के लिए जीवन और ऊर्जा के स्रोत हैं। सूर्य देवता का उल्लेख वैदिक साहित्य से लेकर पुराणों तक मिलता है, और वे वैदिक काल के सबसे पुराने देवताओं में से एक माने जाते हैं।
इस निबंध में हम सूर्य देवता की उत्पत्ति, उनकी लीलाओं, उनके परिवार, उनसे संबंधित पौराणिक कथाओं और उनकी पूजा के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
सूर्य देवता की उत्पत्ति
सूर्य देवता का संबंध आदित्य नामक देवताओं से है, जो कश्यप ऋषि और अदिति के पुत्र माने जाते हैं। कश्यप और अदिति से उत्पन्न 12 पुत्रों को आदित्य कहा गया, और सूर्य उनमें सबसे प्रमुख हैं। वे प्रकाश, ऊर्जा, और जीवन का प्रतीक हैं, जो समस्त संसार को ऊर्जा प्रदान करते हैं।
वेदों में सूर्य देवता की महिमा का विशेष वर्णन मिलता है। ऋग्वेद के सूर्य सूक्त में उन्हें संसार के पालनहार और समस्त जीवों के जीवनदायी शक्ति के रूप में वर्णित किया गया है। सूर्य देवता की किरणें न केवल भौतिक रूप से जीवन प्रदान करती हैं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी व्यक्ति को ज्ञान, ऊर्जा और जीवन का मार्ग दिखाती हैं।
सूर्य देवता का परिवार
सूर्य देवता का परिवार भी महत्वपूर्ण है। उनकी पत्नी का नाम संज्ञा है, जो विश्वकर्मा की पुत्री थीं। उनके तीन प्रमुख संतानें हैं: वैवस्वत मनु, यमराज, और यमी (या यमुना)। वैवस्वत मनु मनुष्यों के आदि पूर्वज माने जाते हैं, जबकि यमराज मृत्यु के देवता हैं और यमी यमुना नदी की देवी हैं।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, सूर्य देवता का तेज इतना अधिक था कि संज्ञा उनके साथ जीवन व्यतीत नहीं कर पा रही थीं। इसलिए उन्होंने अपनी छाया (छाया देवी) को सूर्य देवता के साथ रहने के लिए छोड़ दिया और स्वयं तपस्या करने चली गईं। छाया देवी से सूर्य देवता के तीन और पुत्र उत्पन्न हुए: शनि देव, तपती और सावर्णि मनु। इस प्रकार सूर्य देवता का परिवार काफी बड़ा और महत्वपूर्ण है।
सूर्य देवता से जुड़ी पौराणिक कथाएं
सूर्य देवता के साथ कई रोचक पौराणिक कथाएं जुड़ी हैं, जो उनके महत्व और शक्ति को दर्शाती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कथाएं निम्नलिखित हैं:
1. संज्ञा और छाया की कथा
संज्ञा देवी, सूर्य देवता की पत्नी, उनके असहनीय तेज से परेशान थीं। उन्होंने अपनी छाया (छाया देवी) को सूर्य देवता के साथ छोड़ दिया और स्वयं तपस्या करने चली गईं। छाया देवी के रूप में उनकी उपस्थिति से सूर्य देवता को कोई संदेह नहीं हुआ और उन्होंने उनके साथ वैवाहिक जीवन जारी रखा। छाया देवी से शनि देव का जन्म हुआ, जिन्हें कालांतर में न्याय के देवता और ग्रहों में शनि ग्रह का स्वामी माना गया।
यह कथा सूर्य देवता के तेज और शक्ति को दर्शाती है, जो इतना प्रबल था कि संज्ञा उन्हें सहन नहीं कर सकीं और उन्हें तपस्या का मार्ग अपनाना पड़ा।
2. यम और यमी की कथा
सूर्य देवता और संज्ञा की संतानें यमराज और यमी भी एक महत्वपूर्ण कथा का हिस्सा हैं। यमराज मृत्यु के देवता हैं, जबकि यमी यमुना नदी की देवी हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब यमराज की मृत्यु हो गई, तो उनकी बहन यमी अत्यधिक दुखी हो गईं। यमराज ने अपनी बहन के प्रति अपने प्रेम और समर्पण को दिखाते हुए उसे वरदान दिया कि वह यमुना नदी के रूप में अमर हो जाए, जिससे हर कोई उसके जल से पवित्र हो सके।
यह कथा भाई-बहन के प्रेम और समर्पण का प्रतीक है, और इसी कारण यम और यमी की पूजा यम द्वितीया के दिन की जाती है, जिसे भाई दूज भी कहा जाता है।
3. हनुमान जी का सूर्य से ज्ञान प्राप्त करना
एक और प्रमुख कथा हनुमान जी से जुड़ी है। बचपन में हनुमान जी को सूर्य देवता से बहुत आकर्षण था। उन्होंने सूर्य को एक लाल फल समझकर निगलने का प्रयास किया। इस पर इंद्र ने अपनी वज्र से हनुमान जी पर प्रहार किया, जिससे हनुमान जी मूर्छित हो गए। इस घटना के बाद पवन देव (हनुमान के पिता) क्रोधित हो गए और सारी वायु को रोक दिया। इस स्थिति से पृथ्वी पर जीवन संकट में आ गया। तब देवताओं ने हनुमान जी को वरदान दिया, जिससे उन्हें कई दिव्य शक्तियां प्राप्त हुईं।
बाद में, हनुमान जी ने सूर्य देवता को अपना गुरु बनाया और उनसे वेदों और अन्य ज्ञान की शिक्षा प्राप्त की। इस कथा से पता चलता है कि सूर्य देवता केवल ऊर्जा और प्रकाश के स्रोत ही नहीं हैं, बल्कि वे ज्ञान और बुद्धि के देवता भी माने जाते हैं।
सूर्य की पूजा और महत्व
सूर्य देवता की पूजा का विशेष महत्व है। वेदों में सूर्य को “सविता” कहा गया है, जो जगत की रचना करने वाला देवता है। सूर्य को नियमित रूप से जल अर्पण करना और सूर्य को अर्घ्य देना हिंदू धर्म में बहुत प्रचलित है। यह न केवल एक धार्मिक कर्मकांड है, बल्कि इसके पीछे स्वास्थ्य और मानसिक शांति के वैज्ञानिक आधार भी हैं।
1. सूर्य नमस्कार
सूर्य देवता की पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा “सूर्य नमस्कार” है। यह एक योगासन का समूह है, जिसमें 12 अवस्थाओं में सूर्य की प्रार्थना की जाती है। यह योगासन शरीर को स्वस्थ और ऊर्जावान रखने में सहायक होता है। इसके अलावा, सूर्य नमस्कार मानसिक शांति और एकाग्रता को बढ़ाने में भी सहायक है।
2. छठ पूजा
सूर्य देवता की पूजा का सबसे प्रसिद्ध त्योहार है छठ पूजा। यह पर्व विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। छठ पूजा में लोग उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं और उनके आशीर्वाद की कामना करते हैं। यह त्योहार सूर्य देवता के प्रति आस्था और समर्पण का प्रतीक है।
छठ पूजा का महत्व विशेष रूप से इसलिए है क्योंकि यह सूर्य के प्रति आभार प्रकट करने का अवसर होता है। इस त्योहार में लोग कठिन व्रत और उपवास रखते हैं, और सूर्य की उपासना करते हैं। सूर्य की किरणें व्यक्ति को स्वास्थ्य, समृद्धि और दीर्घायु प्रदान करती हैं।
3. रथ सप्तमी
रथ सप्तमी एक और महत्वपूर्ण पर्व है, जो सूर्य देवता को समर्पित है। यह पर्व माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मनाया जाता है और इसे “सूर्य जयंती” भी कहा जाता है। इस दिन लोग सूर्य देवता की पूजा करके उनसे स्वस्थ और सुखी जीवन की कामना करते हैं। माना जाता है कि इस दिन सूर्य देवता अपने रथ पर सवार होकर संसार का भ्रमण करते हैं और सभी को जीवनदायिनी ऊर्जा प्रदान करते हैं।
सूर्य ग्रहण और उसका महत्व
सूर्य ग्रहण का भी सूर्य देवता के साथ गहरा संबंध है। हिंदू धर्म में सूर्य ग्रहण को विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्य ग्रहण राहु और केतु के कारण होता है। समुद्र मंथन के समय राहु और केतु ने अमृत पान करने का प्रयास किया था, लेकिन सूर्य और चंद्रमा ने उनकी पहचान कर ली और भगवान विष्णु ने राहु का सिर काट दिया। इस कारण राहु और केतु समय-समय पर सूर्य और चंद्रमा को ग्रसते हैं, जिसे हम सूर्य और चंद्र ग्रहण के रूप में देखते हैं।
सूर्य ग्रहण के समय विशेष रूप से ध्यान और जप करने की परंपरा है। इसे एक शुभ अवसर माना जाता है, जब व्यक्ति अपनी आत्मा को शुद्ध कर सकता है और ईश्वर से संपर्क कर सकता है।
सूर्य देवता का प्रतीकात्मक महत्व
सूर्य देवता न केवल शारीरिक रूप से जीवन का स्रोत हैं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी उनका विशेष महत्व है। उन्हें “आत्मा” का प्रतीक माना जाता है। उनकी किरणें आत्मज्ञान और जागरूकता की प्रतीक हैं, जो अज्ञानता के अंधकार को दूर करती हैं। उनके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती, और इसलिए वे सनातन धर्म में अत्यधिक पूजनीय हैं।
सूर्य देवता का रथ सात घोड़ों द्वारा खींचा जाता है, जो जीवन के सात रंगों और सात चक्रों का प्रतीक है। ये सात घोड़े जीवन के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, जैसे कि मन, बुद्धि, चेतना, आत्मा, और इंद्रियां। उनके रथ का सारथी अरुण है, जो सूर्योदय का प्रतीक है।