मध्य पाषाण काल का इतिहास:- मध्य पाषाण काल, जिसे अंग्रेज़ी में “Mesolithic Age” कहा जाता है, मानव इतिहास का एक महत्वपूर्ण कालखंड है, जो लगभग 12,000 से 8,000 वर्ष पूर्व का माना जाता है। यह काल पाषाण युग के तीन प्रमुख चरणों – पुरापाषाण (Paleolithic), मध्यपाषाण (Mesolithic) और नवपाषाण (Neolithic) में से मध्य चरण का प्रतिनिधित्व करता है। यह वह समय था जब मानव ने शिकार, मछली पकड़ने और वन्य संपदा पर निर्भर रहते हुए जीवनयापन किया, साथ ही वह धीरे-धीरे कृषि और स्थायी निवास की ओर बढ़ने लगा।
मध्य पाषाण काल का परिचय
मध्य पाषाण काल पुरापाषाण काल के अंत और नवपाषाण काल की शुरुआत के बीच का संक्रमण काल था। यह वह समय था जब बर्फ की चादरें पिघलने लगी थीं और जलवायु में परिवर्तन होने लगे थे, जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरणीय परिस्थितियाँ भी बदल रही थीं। इस काल के मानव समुदायों ने अपनी जीवनशैली में उल्लेखनीय परिवर्तन किए। वे अब केवल बड़े जंतुओं के शिकार तक सीमित नहीं थे, बल्कि छोटे जंतुओं का शिकार, मछली पकड़ना, और फल-फूल इकट्ठा करना उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया था।
जलवायु और पर्यावरण में परिवर्तन
मध्य पाषाण काल का प्रमुख कारण जलवायु में व्यापक बदलाव था। हिमयुग (Ice Age) के अंत के साथ ही तापमान में वृद्धि होने लगी और ग्लेशियर पिघलने लगे, जिससे समुद्र का स्तर बढ़ा और नई भूमि एवं जल संसाधन उपलब्ध हुए। जलवायु परिवर्तन ने वनस्पतियों और जीव-जंतुओं पर भी गहरा प्रभाव डाला, जिससे मानव को नए पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुसार अपने जीवन के तरीकों को ढालना पड़ा।
जैसे-जैसे बर्फ पिघलती गई, मनुष्यों को उन क्षेत्रों में बसने के अवसर मिले जो पहले बर्फ से ढंके हुए थे। वनस्पति का प्रसार बढ़ा और नदियों तथा झीलों के किनारे बसेरा करने वाले समुदायों की संख्या में वृद्धि हुई। इन नए पर्यावरणीय संसाधनों ने मानव को छोटे जानवरों का शिकार करने, मछलियों को पकड़ने और वन्य फल-फूलों का संग्रह करने के लिए प्रेरित किया।
औजारों में परिवर्तन
मध्य पाषाण काल की एक प्रमुख विशेषता औजारों में परिवर्तन और सुधार थी। इस काल के लोग अब माइक्रोलिथ (Microliths) नामक छोटे और उन्नत औजारों का उपयोग करने लगे थे। ये माइक्रोलिथ छोटे, पतले और नुकीले पत्थर के टुकड़े होते थे, जिन्हें विभिन्न उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाता था। इन औजारों को लकड़ी या हड्डियों में फिट कर तीर, भाला, और छुरी के रूप में प्रयोग किया जाता था। यह तकनीक शिकार को अधिक सटीक और प्रभावी बनाती थी।
पुरापाषाण काल की तुलना में मध्य पाषाण काल के औजार अधिक परिष्कृत और उपयोगी थे। इन औजारों का प्रयोग न केवल शिकार के लिए, बल्कि मछली पकड़ने, वन्य फल इकट्ठा करने और अन्य घरेलू कार्यों के लिए भी किया जाने लगा था। इस काल में औजारों के निर्माण में भी विविधता देखने को मिलती है, जैसे कि तीरों के लिए नुकीले ब्लेड और मछली पकड़ने के लिए कांटे।
शिकार और भोजन संग्रहण
मध्य पाषाण काल के मानव समाज का मुख्य आधार शिकार, मछली पकड़ना और भोजन संग्रहण था। लेकिन इस समय की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि अब केवल बड़े जानवरों पर निर्भरता कम हो गई थी। इसके बजाय, छोटे जानवरों, पक्षियों, मछलियों और वन्य पौधों से प्राप्त भोजन पर निर्भरता बढ़ गई थी। इससे भोजन के स्रोत अधिक विविध और स्थिर हो गए थे।
मानव समुदाय झीलों, नदियों और तटीय क्षेत्रों में बसने लगे थे, जहाँ मछली और अन्य जलीय संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे। इसके अलावा, मानव ने छोटे जानवरों जैसे खरगोश, हिरण आदि का शिकार करना भी शुरू किया, जो पर्यावरणीय बदलावों के साथ अधिक अनुकूल थे। यह बदलाव जीवनयापन के नए तरीकों की ओर इशारा करता है, जिसमें शिकार के अलावा वन्य फल, जड़ी-बूटियाँ, और अन्य वनस्पतियों का संग्रह भी महत्वपूर्ण हो गया था।
सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन
मध्य पाषाण काल में सामाजिक संरचना में भी महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिलते हैं। इस काल में जनसंख्या वृद्धि और स्थायी बस्तियों का विकास हुआ। छोटे-छोटे समूहों में रहने वाले लोग अब स्थायी या अर्ध-स्थायी बस्तियों में बसने लगे थे। यद्यपि इन बस्तियों का आकार छोटा था, परंतु यह नवपाषाण काल की ओर बढ़ने का संकेत था, जहाँ कृषि और स्थायी निवास प्रमुख हो गए थे।
इस काल के मानव समुदायों में सामाजिक सहयोग और श्रम विभाजन भी देखने को मिलता है। शिकार, मछली पकड़ने और भोजन संग्रहण के कार्यों में पुरुष और महिलाओं की अलग-अलग भूमिकाएँ हो सकती थीं। इसके अलावा, यह संभव है कि कुछ समूहों ने विशिष्ट कार्यों में विशेषज्ञता हासिल की हो, जैसे कि औजार बनाना या मछली पकड़ना।
सांस्कृतिक दृष्टिकोण से, इस काल में कलात्मक और धार्मिक गतिविधियों का भी साक्ष्य मिलता है। कुछ पुरातात्विक स्थलों पर शैल चित्र और मूर्तियों के अवशेष मिले हैं, जो इस बात का संकेत देते हैं कि इस समय के लोग कला और आध्यात्मिकता के प्रति जागरूक थे। शैल चित्रों में अक्सर जानवरों और मानव आकृतियों का चित्रण किया गया है, जो संभवतः शिकार और जीवन के अन्य पहलुओं से जुड़े हुए थे।
कृषि की ओर पहला कदम
मध्य पाषाण काल की एक प्रमुख विशेषता यह थी कि इस समय मानव ने कृषि और पशुपालन की दिशा में अपने कदम बढ़ाए। हालांकि इस काल में कृषि पूरी तरह से विकसित नहीं हुई थी, लेकिन मानव ने पहली बार बीज बोने और छोटे पौधों की खेती करने का प्रयास किया। यह प्रयास मुख्य रूप से उन क्षेत्रों में किया गया जहाँ वनस्पतियों की उपलब्धता अधिक थी।
इसके अलावा, कुछ समुदायों ने पशुपालन की दिशा में भी कदम बढ़ाए, खासकर कुत्तों को पालतू बनाया। कुत्ते शिकार में मानव के सहयोगी बने और बाद में अन्य जानवरों को भी पालने की परंपरा शुरू हुई। इस प्रकार, यह काल कृषि और पशुपालन की दिशा में मानव की शुरुआती प्रगति को दर्शाता है, जिसने नवपाषाण काल में पूरी तरह से विकसित होकर मानव सभ्यता में क्रांति ला दी।
भारत में मध्य पाषाण काल
भारत में भी मध्य पाषाण काल का महत्वपूर्ण स्थान है। भारतीय उपमहाद्वीप में मध्य पाषाण काल के कई पुरातात्विक स्थल मिले हैं, जैसे कि भीमबेटका, आदमगढ़, और लुंगसियाम। ये स्थल शैलाश्रयों, गुफाओं और नदी किनारों पर स्थित हैं, जहाँ मध्य पाषाण काल के मानव समुदायों ने अपने निशान छोड़े हैं।
भारत में इस काल के मानव समाज ने शिकार, मछली पकड़ना और वन्य संपदा पर निर्भर रहते हुए जीवनयापन किया। यहाँ के शैल चित्रों में उस समय के लोगों के जीवन, शिकार और धार्मिक विश्वासों की झलक मिलती है। विशेष रूप से भीमबेटका के शैल चित्र इस बात का प्रमाण हैं कि इस काल के लोग कला और संस्कृति के प्रति जागरूक थे।
निष्कर्ष
मध्य पाषाण काल मानव इतिहास का एक महत्वपूर्ण कालखंड है, जो मानव सभ्यता के विकास में एक पुल के रूप में कार्य करता है। इस काल में मानव ने न केवल अपने औजारों और जीवनशैली में सुधार किया, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संरचनाओं में भी महत्वपूर्ण बदलाव किए। शिकार और भोजन संग्रहण से लेकर कृषि और स्थायी निवास की दिशा में उठाए गए प्रारंभिक कदम इस काल को विशिष्ट बनाते हैं।
मध्य पाषाण काल के अंत में मानव ने कृषि और पशुपालन की दिशा में ठोस प्रगति की, जिसने नवपाषाण काल की नींव रखी। यह काल मानव के मानसिक, सामाजिक और भौतिक विकास का प्रतीक है, जिसने आधुनिक सभ्यता की दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ दिया।